नई दिल्ली।। यौन उत्पीड़न का फर्जी केस फाइल करना एक महिला को अच्छा-खासा महंगा पड़ गया। महिला ने 15 साल पहले उत्तरी रेलवे के एक सीनियर ऑफिसर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। कोर्ट ने महिला को आदेश दिया है कि वह रिटायर हो चुके इस ऑफिसर को अब 5 लाख रुपये का मुआवजा दे।
अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज राजेंद्र कुमार शास्त्री ने अपने फैसले में कहा कि महिला ने 74 साल के इस पूर्व अधिकारी को मानसिक रूप से चोट पहुंचाने के साथ ही उनकी इज्जत पर बट्टा लगाया है। कोर्ट ने कहा, 'हर पुरुष का अपना एक स्टेटस होता है और उसे अपनी मान-प्रतिष्ठा के बचाव का अधिकार है।'
महिला ने आरोप लगाया था कि 1996 में इस अधिकारी ने उसका यौन शोषण किया था। वह तब उत्तरी रेलवे में चीफ पर्सनल ऑफिसर की सेक्रेटरी थीं। सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल (कैट) ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था। सन् 2008 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले को 'फर्जी' करार देते हुए कैट के आदेश को खारिज कर दिया था।
पूर्व अधिकारी ने तब महिला के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया और 10 लाख रुपये के मुआवजे का दावा ठोक दिया। पूर्व अधिकारी ने यह मुआवजा 'भावानात्मक सदमे' की एवज में मांगा था जिससे उन्हें गुजरना पड़ा।
पूर्व अधिकारी का दावा था कि काम न करने पर फटकार लगाने के बाद महिला ने उन पर यह आरोप लगाया। उनका कहना था कि इस पूरे मुकदमेबाजी के दौरान उन्हें लोगों के बीच शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
जज ने कहा कि याचिकाकर्चा (पूर्व अधिकारी) के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। बाद में महिला ने कोर्ट से गुहार लगाई कि वह विधवा है और इतनी बड़ी पेनल्टी नहीं चुका सकती है। हालांकि, कोर्ट ने महिला के प्रति सद्भावना जताते हुए कहा कि उनकी वर्तमान और आर्थिक स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन, मुआवजे का मकसद महिला को सजा देना नहीं, बल्कि पीड़ित को सांत्वना देना है।
2 Dec 2011, 1347 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क, Nav Bharat Times
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